वांछित मन्त्र चुनें

पु॒रो॒ळाशं॑ पच॒त्यं॑ जु॒षस्वे॒न्द्रा गु॑रस्व च। तुभ्यं॑ ह॒व्यानि॑ सिस्रते॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

puroḻāśam pacatyaṁ juṣasvendrā gurasva ca | tubhyaṁ havyāni sisrate ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

पु॒रो॒ळाशं॑म्। प॒च॒त्य॑म्। जु॒षस्व॑। इ॒न्द्र॒। आ। गु॒र॒स्व॒। च॒। तुभ्य॑म्। ह॒व्यानि॑। सि॒स्र॒ते॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:52» मन्त्र:2 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:17» मन्त्र:2 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजधर्म विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (इन्द्र) ऐश्वर्य्यों के भोगनेवाले ! आप (पचत्यम्) उत्तमप्रकार पाकयुक्त (पुरोळशम्) उत्तम संस्कारों से उत्पन्न किये गये अन्न विशेष का (जुषस्व) सेवन करिये तब (गुरस्व) उद्यम करो और जिससे (तुभ्यम्) आपके लिये (हव्यानि) हवन करने योग्य पदार्थों को (सिस्रते) प्राप्त हों ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे राजन् ! आप रोगनाशक और बुद्धि के बढ़ानेवाले अन्नपान का भोग कर तथा रोगरहित होकर निरन्तर उद्यम को करो, जिससे आपको संपूर्ण सुख प्राप्त होवें ॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः राजधर्मविषयमाह।

अन्वय:

हे इन्द्र ! त्वं पचत्यं पुरोडाशं जुषस्व तदा गुरस्व च यतस्तुभ्यं हव्यानि सिस्रते ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (पुरोळाशम्) सुसंस्कारैर्निष्पादितमन्नविशेषम् (पचत्यम्) पचने साधुम् (जुषस्व) सेवस्व (इन्द्र) भोक्तः (आ) (गुरस्व) उद्यमं कुरुष्व। अत्र व्यत्ययेनात्मनेपदम्। (च) (तुभ्यम्) (हव्यानि) सिस्रते प्राप्नुवन्तु ॥२॥
भावार्थभाषाः - हे राजँस्त्वं रोगनाशकं बुद्धिवर्द्धकमन्नपानं भुक्त्वाऽरोगो भूत्वा सततमुद्यमं कुरु येन भवन्तं सर्वाणि सुखानि प्राप्नुयुः ॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे राजा! तू रोगनाशक व बुद्धी वाढविणाऱ्या अन्नपानाचा भोग करून व रोगरहित होऊन निरंतर उद्योग कर. ॥ २ ॥